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कहानी संग्रह >> सपनों के ढाई घर

सपनों के ढाई घर

रश्मि शर्मा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2025
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17260
आईएसबीएन :9789349180550

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"स्त्री जीवन के अनदेखे सत्यों को गहराई, संवेदना और प्रतिरोध के साथ उजागर करती कहानियाँ।"

रश्मि शर्मा का दूसरा कहानी-संग्रह ‘सपनों के ढाई घर’ इस बात का प्रमाण है कि कथा-लेखन उनके लिए एक गम्भीर एवं जिम्मेदारी भरा सतत कर्म है। जाहिरन, इसका निर्वाह वह अपनी निरन्तर रचनात्मकता और सार्थक हस्तक्षेप से कर रही हैं। इस संग्रह की तमाम कहानियाँ अपने परिवेश के प्रति उनकी सजग संवेदनशीलता और उनमें निहित अदीठ जीवन-सत्यों को खोज निकालने की उनकी दृष्टि एवं कौशल से सम्भव हुई हैं। ये कहानियाँ विषय वैविध्य के कारण जितना पाठकों को समृद्ध करती हैं, उतना ही मनुष्य मन की जटिलताओं में उतरकर उनके अवगुंठनों को खोलते हुए चकित भी करती हैं।

ये कहानियाँ स्त्री जीवन की विडम्बनाओं के उन बन्द कपाटों को खोलने की कोशिश करती हैं, जिनके पीछे उनकी नियति छुपी बैठी है। ‘सपनों के ढाई घर’ जिस तरह प्रतिरोध रचती है, वह न सिर्फ चकित करता है, बल्कि पाठकीय चेतना पर उसका असर भी देर तक बना रहता है। रश्मि प्रेम, संवेदना और संचेतना के संयोग से कथा-परिदृश्य निर्मित करती हैं, जिसके भीतर स्त्री-जीवन की अनेक छवियाँ मिलती हैं। इनमें अपनी स्मृतियों में जीती कोई नानी है, तो अपनी परम्परागत कला के बूते अपनी पहचान पर गर्व करती आदिवासी समाज की रुदनी भी है। अपने अकेलेपन के बीच अपने जीवन में आए पुरुषों को याद करती श्रेया है, अपने पति के लिए चिन्तित कृतिका है, अपनी पूर्व मालकिन से होड़ लेती सोनी है, अपने जीवन में अप्रत्याशित फैसले लेती पूर्णिमा है। जाहिर तौर पर ये अनेक स्त्रियाँ हैं, लेकिन इन सभी से मिलकर स्त्री-जीवन का वृत्त बनता है।

रश्मि शर्मा ने इसे बड़ी संलग्नता, कौशल और धैर्य से रचा है। इस रचाव में उनका सूक्ष्म ऑब्जर्वेशन और मनुष्य मनोविज्ञान की गहन समझ शामिल है। इन कहानियों का सौन्दर्य किसी कलाबाजी में नहीं, अपने कहन के सौष्ठव में निहित है। ये अपने कथ्य के अनुकूल अपना शिल्प लेकर आती हैं, लिहाजा, इन्हें पढ़ने का आस्वाद भी भिन्न है और इनका प्रभाव भी अभिन्न। यह संग्रह रश्मि शर्मा के कथा-कौशल की एक और बानगी है।

— अवधेश प्रीत

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